ममता के प्रति जो धारणा बदल रही – Rant Raibaar

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अजीत द्विवेदी
पश्चिम बंगाल में इतिहास अपने को दोहराता लग रहा है। एक बाद एक हो रही भयावह घटनाएं और राज्य के अलग अलग हिस्सों में स्वंयस्फूर्त हो रहे जन आंदोलन 2011 से पहले के समय की याद दिला रहे हैं। पश्चिम बंगाल में वामपंथी शासन के पांव उखडऩे से पहले राज्य के हालात ऐसे ही थे। एक तो ममता बनर्जी ने मुख्य विपक्ष के नाते सरकार की नाक में दम किया हुआ था। नंदीग्राम में केमिकल हब बनाने के लिए भूमि अधिग्रहण और सिंगूर में टाटा की नैनो कार के प्रोजेक्ट के लिए जमीन अधिग्रहण के खिलाफ ममता ने इतना बड़ा आंदोलन खड़ा कर दिया कि साढ़े तीन दशक से सत्ता में बैठा वाम मोर्चा इसे संभाल नहीं सका। नंदीग्राम में 2007 में जो आंदोलन शुरू हुआ उसकी अंत परिणति 2011 में वाम शासन के अंत और ममता बनर्जी की ताजपोशी के रूप में हुई।

अब 2026 के विधानसभा चुनाव से दो साल पहले से ठीक वैसे ही हालात बन रहे हैं, जैसे 2007 में थे। ममता बनर्जी के खिलाफ बात बात पर आंदोलन भडक़ जा रहा है। फर्क इतना है कि इस बार ममता बनर्जी के सामने उनकी तरह का कोई फायरब्रांड विपक्षी नेता नहीं है। भाजपा मुख्य विपक्षी पार्टी है लेकिन उसके पास कोई चेहरा नहीं है। वह तृणमूल कांग्रेस से उधार पर लाए शुभेंदु अधिकारी के दम पर ममता बनर्जी से नहीं लड़ सकती है। भाजपा इस बात को समझ रही है तभी उसने कोई चेहरा आगे नहीं किया है और न यह दिखा रही है कि ममता सरकार के खिलाफ अलग अलग जगहों पर हो रहे आंदोलन के पीछे उसका कोई हाथ है। कई जगह सचमुच भाजपा का हाथ नहीं भी है। लोग खुद से आंदोलित हो रहे हैं और हर छोटा बड़ा प्रदर्शन अंत में सरकार विरोधी बड़े आंदोलन में तब्दील हो रहा है।

सबसे अहम बात यह है कि मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की नेता के तौर पर ममता बनर्जी धारणा की लड़ाई हार रही हैं। वे नैरटिव लूज कर रही हैं। उन्होंने मां, माटी मानुष’ का जो नैरेटिव गढ़ा था वह उनके हाथ से फिसल रहा है। महिलाएं उनकी सरकार से नाराज हैं और उनको कठघरे में खड़ा कर रही हैं। आरजी कर अस्पताल में जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्कार और जघन्य हत्या की घटना के बाद ममता के प्रशासन ने जिस तरह से काम किया उससे ममता के दामन पर बहुत गहरे दाग लगे हैं। उनकी साधारण सफेद सूती साड़ी महिलाओं को भरोसा जगाती थी वह अब नहीं हो रहा है।

कोलकाता के जूनियर डॉक्टरों ने 42 दिन तक हड़ताल की और इस दौरान डॉक्टरों से इतर सामान्य महिलाओं ने भी बड़ी तादाद में आकर उनका समर्थन किया। फिर जूनियर डॉक्टर भूख हड़ताल पर बैठे और उनको व्यापक समाज का समर्थन मिला। वे इस बात से आहत हैं कि अस्पतालों में उनके ऊपर बेवजह हमले होते हैं और सरकार कुछ नहीं करती है। वे राज्य में धमकी देने की संस्कृति का समापन चाहते हैं और इसमें भी सरकार कुछ नहीं कर रही है।

ममता बनर्जी की सरकार के बारे में यह धारणा बन रही है कि उसने महिला की अस्मिता और जान के ऊपर अपनी सरकार की छवि को प्रमुखता दी और इसलिए छवि बचाने के लिए ममता की पुलिस ने पीडि़त डॉक्टर के परिजनों को पैसे का ऑफर दिया था। अभी इस घटना का विरोध बंद भी नहीं हुआ था कि दक्षिण 24 परगना के कृपाखाली इलाके में एक 10 वर्षीय बच्ची का शव मिला, जिसके परिजनों का कहना है कि उसके साथ बलात्कार किया गया और उसके बाद बहुत बेरहमी से हाथ पांव तोड़ कर उसको मार डाला गया।

लडक़ी के लापता होने की शिकायत जब थाने में की गई तो पुलिस वालों ने कोई नोटिस नहीं लिया और बच्ची को तलाशने का कोई प्रयास नहीं किया। तभी उसका शव मिलने के बाद लोगों का गुस्सा भडक़ा और उन्होंने थाने में आग लगा दी। उससे पहले तोडफ़ोड़ की और पुलिस वालों पर हमला किया। पुलिस वालों को भाग कर जान बचानी पड़ी। लोगों ने तृणमूल कांग्रेस के स्थानीय विधायक को भी खदेड़ कर भगा दिया। लोगों ने इस घटना की तुलना आरजी कर अस्पताल की घटना से की और कहा कि दोनों मामलों में ममता बनर्जी की पुलिस का रवैया एक जैसा था।

इससे पहले संदेशखाली में जो हुआ वह भी सबको पता है। तृणमूल कांग्रेस के स्थानीय नेता शाहजहां शेख की ज्यादतियों के खिलाफ लोग एकजुट हुए और उन्होंने सडक़ पर उतर कर आंदोलन किया। उस मामले में भी ममता बनर्जी की पुलिस ने आरोपी को बचाने का प्रयास किया। संदेशखाली, कोलकाता और दक्षिण 24 परगना के कृपाखाली की तीन घटनाएं ममता सरकार के बारे में बन रही नकारात्मक धारणा का मुख्य कारण बनी हैं। वैसे और भी कारण होंगे। लगातार तीसरी बार चुनाव जीतने के बाद किसी भी सरकार के प्रति एंटी इन्कम्बैंसी पैदा होती है। हालांकि जब भी इस तरह की बात होती है तो तृणमूल समर्थकों का कहना होता है कि लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी ने 29 सीटें जीती हैं। उसने भाजपा से उसकी जीती हुई छह सीटें छीन ली है। इसका मतलब है कि लोग अब भी उसके साथ हैं।

लेकिन ध्यान रहे लोकसभा का चुनाव आरजी कर अस्पताल की घटना के पहले हुआ था और दूसरे, केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ देश भर में नाराजगी थी, जिसका फायदा ममता बनर्जी को मिला। आरजी कर अस्पताल की घटना के बाद ममता के प्रति धारणा तेजी से बदली है। जितनी बड़ी संख्या में महिलाएं उनके खिलाफ प्रदर्शन करने सडक़ पर उतरी हैं वह मिसाल है कि चीजें तेजी से बदल रही हैं। ममता के खिलाफ बड़ी संख्या में महिलाएं सडक़ों पर उतरी हैं और इसके प्रतीक इस साल दुर्गापूजा के पंडालों में भी दिखे। अनेक पूजा पंडाल आरजी कर अस्पताल की घटना की थीम पर बने थे। एक पूजा पंडाल में जूनियर डॉक्टर का शव मां दुर्गा के साथ में था। वे दोनों हाथों से जूनियर डॉक्टर के शव उठाए हुए थीं। एक दूसरे पूजा पंडाल में जूनियर डॉक्टर का शव जमीन पर पड़ा था और मां दुर्गा ने अपनी दोनों आंखें अपने हाथ से ढक ली थी। उस पंडाल में मां दुर्गा का शेर भी शर्मिंदा होकर नजरें झुका कर खड़ा था।

पश्चिम बंगाल के चुनाव नतीजों की बहुत झलक दुर्गापूजा के पंडालों से मिलती है। अगर इसको पैमाना मानें तो साफ दिखेगा कि ममता बनर्जी नैरेटिव लूज कर रही हैं। उनके बारे में धारणा बदल रही है। महिलाओं की नाराजगी के अलावा उनके प्रति धारणा बदलने वाली दूसरी बात यह है कि कोलकाता और पूरे बंगाल की सिविल सोसायटी उनके खिलाफ है। सिविल सोसायटी ने ममता बनर्जी से मुंह मोड़ लिया है।

ममता बनर्जी अपनी चुनाव में बचे हुए पौने दो साल में धारणा बदलने के लिए कुछ न कुछ जरूर करेंगी लेकिन कामयाब कितनी होंगी यह नहीं कहा जा सकता है। उनके साथ सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट यह है कि विपक्ष नहीं है। 75 विधायक होने के बावजूद भाजपा विपक्ष के नाते पूरी तरह से अप्रभावी है। उसके पास तृणमूल से आयातित नेता हैं। अभी पश्चिम बंगाल में छह विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं। इनके नतीजे भी राज्य की आगे की राजनीति की कुछ झलक देने वाले होंगे। हालांकि इनके नतीजों से 2026 का अंदाजा लगाना ठीक नहीं होगा। फिर भी पता चलेगा कि ममता के प्रति जो धारणा बदल रही है, उसका कितना चुनावी फायदा भाजपा को होता है।

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