अशोक शर्मा
भारत सरकार ने पांच नयी भाषाओं को ‘शास्त्रीय’ (क्लासिकल) भाषाओं की श्रेणी में शामिल किया है। ये भाषाएं हैं- मराठी, पाली, प्राकृत, असमी एवं बांग्ला। संस्कृत, तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम और उड़िया पहले से ही इस सूची में हैं। इस प्रकार अब देश में मान्यता प्राप्त शास्त्रीय भाषाओं की कुल संख्या 11 हो गयी है। उल्लेखनीय है कि 12 अक्टूबर 2004 को तमिल भाषा को शामिल करने के साथ इस सूची का प्रारंभ किया गया था। उसी वर्ष नवंबर में संस्कृत को और बाद के वर्षों में अन्य भाषाओं को शास्त्रीय दर्जा दिया गया। अब यह निर्णय आया है। ये निर्णय विशेषज्ञ समिति एवं साहित्य अकादमी द्वारा तैयार मानदंडों के आधार पर लिये जाते हैं।
इस वर्ष सुझावों के आधार पर मानदंडों में कुछ संशोधन भी किये गये हैं। सांस्कृतिक विविधता एवं समृद्धि की दृष्टि से भारत विश्व में अतुलनीय स्थान रखता है। ‘कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी’ की विशिष्टता वाले हमारे देश में अनेक प्राचीन भाषाएं हैं, जो अभी भी प्रचलन में हैं। यह सच है कि कुछ भाषाएं अध्ययन एवं अनुसंधान समेत कुछ विशेष कार्यों के लिए प्रयुक्त होती हैं, पर वे विलुप्त नहीं हुई हैं। संविधान की आठवीं अनुसूची के अंतर्गत भारतीय भाषाओं का एक वर्गीकरण होता है। जनगणना के दौरान लोगों द्वारा दी गयी जानकारी के आधार पर भाषियों की गिनती की जाती है। केंद्र और राज्यों के स्तर पर विभिन्न भाषाओं को संरक्षित करने, उपलब्ध साहित्य का अनुवाद एवं प्रकाशन कराने तथा विकसित करने के कई कार्यक्रम चलते रहते हैं।
पांडुलिपियों के संग्रहण और संरक्षण पर भी बहुत ध्यान दिया जा रहा है। ऐसे में शास्त्रीय भाषाओं की सूची का विस्तार एक उत्साहजनक निर्णय है। इससे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इनके सांस्कृतिक एवं अकादमिक महत्व को बढ़ाने में मदद मिलेगी। साल 2008 में शास्त्रीय तमिल के लिए एक केंद्रीय संस्थान की स्थापना की गयी, जिसमें प्राचीन तमिल ग्रंथों के अनुवाद के साथ-साथ तमिल भाषा सिखाने के पाठ्यक्रम भी चलाये जाते हैं। कन्नड़, तेलुगू, मलयालम और उड़िया भाषाओं के लिए भी विशिष्ट केंद्र खोले गये हैं। वर्ष 2020 में संस्कृत के लिए तीन विश्वविद्यालयों की स्थापना की गयी। विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में भारतीय भाषाओं के प्रति रुचि बढ़ाने के लिए कार्यक्रम एवं पाठ्यक्रम चलाये जा रहे हैं। आशा है कि जिन भाषाओं को अब शास्त्रीय श्रेणी में शामिल किया गया है, उनके विकास के लिए भी अकादमिक प्रयास होंगे। संस्थाओं और नागरिकों को भी इस दिशा में योगदान करना चाहिए।
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