अजय दीक्षित
कश्मीर फिलहाल केन्द्र शासित प्रदेश है । देश में इस समय आठ केन्द्र शासित प्रदेश हैं –दिल्ली, चण्डीगढ़, लक्षद्वीप, अण्डमान निकोबार, पांडिचेरी, कश्मीर- जम्मू, लद्दाख और दमन दीप । पहले दमन दीप और दो फ्रेंच कॉलानी अलग-अलग थीं । अब उन्हें मिलाकर एक ही केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया गया है । फिलहाल इन आठ केन्द्र शासित प्रदेशों में दिल्ली और पांडिचेरी में विधानसभाएं हैं । परन्तु वह उपराज्यपाल को ही सारे अधिकार निहित हैं । दिल्ली की खबरें तो रोज अखबारों की सुर्खियां बनती हैं । जब किरण बेदी पांडिचेरी में उपराज्यपाल थीं तो पांडिचेरी की खबरें भी खूब आती थीं । वहां किरण बेदी समानांतर सरकार चला रही थीं । हार कर केन्द्र को किरण बेदी को हटाना पड़ा । आजकल वे एक तरह से राजनीति से सन्यास लिए हुए हैं । दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल और उपराज्यपाल के बीच विवाद चलता रहता है । दिल्ली सरकार के अफसरों पर मुख्यमंत्री का कंट्रोल नहीं है, उपराज्यपाल का है । जब सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को यह अधिकार दिया तो केन्द्र सरकार तत्काल अध्यादेश लाकर यह अधिकार उपराज्यपाल को सौंप दिया । एक तरह से केन्द्र का गृह मंत्रालय ही दिल्ली सरकार है । लोग पूछते हैं कि यदि दिल्ली में सरकार उपराज्यपाल है तो शराब नीति को कैसे लागू किया गया जिसमें कमीशन खोरी के आरोप में केजरीवाल जेल में हैं ।
5 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री ने 10:30 अपने निवास पर केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई और उसमें कश्मीर में धारा 370 व 35्र को समाप्त करना तय किया गया । किसी भी मंत्री को प्रेस से बात करने के लिए मना कर दिया गया । सीधे उन्हें संसद भवन में ले जाया गया और बहुमत से यह प्रस्ताव पारित हो गया ।
पिछले पांच साल से वहां उपराज्यपाल का शासन है । कश्मीर अभी भी फौज के सहारे चल रहा है । प्रतिदिन पाकिस्तानी घुसपैठिए कश्मीर में उपद्रव करते रहते हैं ।
भारतीय जनता पार्टी अभी कश्मीर में चुनाव के पक्ष में नहीं थी । अभी भाजपा की अपनी स्थिति कश्मीर में मजबूत नहीं है । परन्तु सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि 30 सितम्बर तक कश्मीर में चुनाव करा दिये जायें तो अब वहां चुनाव आयोग ने चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है ।
भाजपा नेशनल कान्फ्रेंस के खिलाफ है । उनके घोषणा पत्र के बहुत से मुद्दों पर गृह मंत्रालय को ऐतराज है । कांग्रेस और नेशनल कान्फ्रेंस के गठजोड़ पर भी अमित शाह सवाल उठा रहे हैं । परन्तु विपक्ष कहता है कि जब फारूक अब्दुल्ला कश्मीर के मुख्यमंत्री थे तो उनके पुत्र उमर अब्दुल्ला अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में विदेश राज्य मंत्री थे । विदेश मंत्रालय बहुत अहम मंत्रालय होता है । यूं भाजपा मेहबूबा मुफ्ती के साथ मिलकर कश्मीर में सरकार बना चुकी है । वह दो बार भाजपा का उपमुख्यमंत्री रहा है । पहली बार मुफ्ती मोहम्मद सईद की सरकार में और फिर मुफ्ती की बेटी मेहबूबा मुफ्ती की सरकार में ।
परन्तु भाजपा अपने दम पर वहां सरकार नहीं बना सकती । गुलाम नबी आजाद को लुभाने की बहुत कोशिश भाजपा ने की भी । राज्यसभा से उनके रिटायरमेंट के समय प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी तारीफ के पुल बांध दिये थे । कहा कि गुलाम नबी आजाद रो रहे थे जब गुजरात के कुछ पर्यटकों को आतंकवादियों ने भून दिया था । तब नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे । गुलाम नबी आजाद को पद्म पुरस्कार से भी नवाजा गया ।
10 साल पहले हुए चुनाव में भाजपा ने 25 सीटें जीती थीं । इस बार क्या होता है, देखना है । वैसे कश्मीर में भाजपा का कोई बड़ा जनाधार नहीं हैं । केवल जम्मू में सीटें जीत सकती हैं । लोग यह भी प्रश्न उठा रहे हैं कि लद्दाख में चुनाव क्यों नहीं हो रहे हैं? अभी कश्मीर में लेफ्टिनेंट गवर्नर को और ज्यादा पावर दे दी गई है । तो वहां सरकार का हाल क्या दिल्ली जैसा होना है ? देखें आगे क्या होता है? अच्छा ही होना चाहिए । यही देश हित में है ।
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