सिसोदिया को जमानत – Rant Raibaar

Estimated read time 1 min read



सर्वोच्च अदालत ने दिल्ली की आबकारी नीति में कथित घोटाले से जुड़े भ्रष्टाचार और धनशोधन मामलों में आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया को सत्रह माह तक जेल में रहने के बाद जमानत दे दी। अदालत ने अधीनस्थ अदालतों की आलोचना करते हुए कहा कि मामले की सुनवाई हुए बगैर ही लंबे समय तक जेल में रखे जाने से वह शीघ्र सुनवाई के अधिकार से वंचित हुए।

सीबीआई और ईडी द्वारा गिरफ्तार सिसोदिया को कुछ शर्तों के साथ यह जमानत मिली है जिसमें पासपोर्ट विशेष अधीनस्थ अदालत में जमा कराने और सबूतों के साथ छेड़छाड़ न करने, गवाहों को प्रभावित न करने के प्रयास शामिल हैं।
पीठ ने दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की समाज में गहरी पैठ बताई और कहा कि अपीलकर्ता के देश से भागने और मुकदमे का सामना करने के लिए उपलब्ध न होने की कोई संभावना नहीं है। सिसोदिया ने इसे ईमानदारी और सच्चाई की जीत बताई। सिसोदिया पर आरोप है कि उन्होंने नई आबकारी नीति लागू कर शराब कारोबारियों को अनुचित लाभ पहुंचाया। इसमें तीन पूर्व सरकारी अफसरों समेत नौ कारोबारी और दो कंपनियां भी दोषी मानी गई।

चूंकि सिसोदिया के पास उस वक्त एक्साइज डिपार्टमेंट भी था इसलिए कथित तौर पर उन्हें मुख्य आरोपी बनाया गया। इस विवाद की शुरुआत से ही आप का दावा है कि भाजपा दिल्ली सरकार की ईमानदार छवि को बिगाडऩे के लिए जान-बूझकर षडयंत्र कर रही है।
जैसा कि सबसे बड़ी अदालत ने कहा जेल अपवाद है, जमानत के नियम हैं, परंतु दोषी साबित होने से पहले ही सजा नहीं प्रारंभ की जा सकती। बार-बार जमानत की अपील खारिज होती रही तथा सवा साल से ज्यादा समय तक सिसोदिया को जेल की सलाखों के भीतर रखना न्यायोचित नहीं कहा जा सकता। लोकतंत्र में जघन्य अपराधियों और सजायाफ्ता आरोपियों को भी जनता की नुमाइंदगी का अधिकार प्राप्त है।

ऐसे में चुने हुए नेताओं के साथ वैमनस्यपूर्ण बर्ताव को सही नहीं ठहरा सकते। राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता भले हो मगर संविधान का सम्मान रखते हुए जनता के समक्ष उदाहरण पेश करना भी आवश्यक है। अदालती कार्रवाई चालू है, दोषियों को बख्शा नहीं जाना चाहिए। धन शोधन के आरोपियों को सख्त सजा का प्रावधान मौजूद है।  वास्तव में सरकारी खजाने को नुकसान हुआ है, तो उसकी भरपाई जरूरी है।

You May Also Like

More From Author

+ There are no comments

Add yours