हिमानी रावत
बीमार व्यक्ति बड़ी आशा लेकर अस्पताल जाता है कि उसका समुचित इलाज हो सकेगा। लेकिन अनेक अस्पताल अपनी कमाई बढ़ाने के लिए अनुचित तौर-तरीके अपनाते हैं, जो अनैतिक भी है और आपराधिक भी। ऐसी शिकायतों को देखते हुए अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को मान्यता देने वाले राष्ट्रीय बोर्ड (एनएबीएच) ने लिखित चेतावनी दी है कि मान्यता हासिल करने और पैनलों में पंजीकृत होने के लिए अगर उन्होंने फर्जी या गलत दस्तावेज जमा किये, तो उनकी मान्यता रद्द की जा सकती है और उनके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।
यह चेतावनी 15 मार्च को जारी की गयी थी, पर इसे 16 मई को सार्वजनिक किया गया। इस राष्ट्रीय बोर्ड का गठन 2005 में हुआ था और यह भारतीय गुणवत्ता परिषद की एक इकाई है। एनएबीएच के तहत चलने वाले मान्यता देने के कार्यक्रम का उद्देश्य यह है कि सरकारी और निजी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता बेहतर हो तथा रोगियों को अच्छा उपचार एवं सुरक्षा हासिल हो। बीते वर्षों में यह कार्यक्रम लगातार प्रभावी होता गया है तथा उसकी गणना वैश्विक स्तर के कार्यक्रमों एवं मानकों में होती है। एनएबीएच की चेतावनी में रेखांकित किया गया है कि अस्पतालों की गलत हरकतों और फर्जी दस्तावेजों के इस्तेमाल से मान्यता प्रक्रिया की दृढ़ता तथा बोर्ड के भरोसे को चोट पहुंच रही है।
ऐसी शिकायतों की संख्या बढ़ती जा रही है, जिनमें कहा जा रहा है कि अनेक अस्पताल अपने दावों से कमतर सेवा उपलब्ध करा रहे हैं तथा कई जगहों पर पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। वे अपनी कमियों को छुपाते हैं और कमाई के लालच में रोगियों का शोषण करते हैं। कुछ समय पहले मशहूर अस्पतालों के बारे में जानकारी सामने आयी थी कि वे बाजार की तुलना में महंगे दामों पर दवाएं बेच रहे हैं। इस मामले में जांच भी हुई थी। एक संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि कोरोना काल में बिस्तर उपलब्ध होने के बावजूद कई निजी अस्पताल संक्रमित लोगों को भर्ती नहीं कर रहे थे। इसके अलावा, वे मनमर्जी से भारी फीस भी वसूल रहे थे।
आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा योजना में शामिल कई अस्पताल गलत खर्च दिखाने के लिए मामलों में चिह्नित एवं दंडित किये गये हैं। लेकिन यह भी सच है कि जितनी गंभीर गलती होती है, उतनी सजा नहीं मिलती। कुछ समय पहले भारत सरकार ने गहन चिकित्सा कक्ष में भर्ती को लेकर दिशा-निर्देश जारी किया है, जिससे अस्पतालों की मनमानी पर कुछ रोक लगी है। हाल में सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को फीस के बारे में नियमन करने का निर्देश देते हुए कहा था कि अगर सरकार ने इस संबंध में कुछ नहीं किया, तो अदालत ही फैसला करेगी। लोगों को भी सचेत एवं जागरूक रहने की आवश्यकता है।
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