सतीश सिंह
कुछ क्षेत्र अत्यंत पिछड़े थे, जैसे- आधारभूत संरचना व शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, पानी, आवास जैसी बुनियादी सुविधाएं। चूंकि निजी क्षेत्र सुधारात्मक पहल नहीं कर रहे थे, इसलिए सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं को मूर्त रूप दिया और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की स्थापना की, ताकि एक निश्चित समय में समावेशी विकास की संकल्पना को साकार किया जा सके। देश में मिनी रत्न, नवरत्न और महारत्न कंपनियों की स्थापना की गयी और इनकी वित्तीय जरूरतों को पोषित करने, आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाने, वित्तीय समावेशन की संकल्पना को साकार करने, लोगों को आत्मनिर्भर बनाने और अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया।
आजादी के समय देश में लगभग 11 सौ छोटे-बड़े निजी बैंक थे, जिनका मुख्य मकसद मुनाफा कमाना था। सामाजिक सरोकारों को पूरा करते हुए मुनाफा कमाने और अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने के लिए भारतीय स्टेट बैंक का राष्ट्रीयकरण एक जुलाई 1955 को किया गया, जबकि अन्य बैंकों का 1969 और 1980 में।
साल 2017 में देश में 27 सरकारी बैंक थे, जिनकी संख्या समेकन के बाद अप्रैल 2020 में घटकर 12 हो गयी। बैंक कॉरपोरेट, आधारभूत संरचना, जैसे- सोलर एनर्जी, विंड एनर्जी, कृषि प्रसंस्करण, रेल कारखाना, रेलवे लाइन, एयरपोर्ट, बंदरगाह आदि, सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्योगों, कृषि व संबद्ध क्षेत्र, जैसे- पशुपालन, डेयरी, हस्तशिल्प, कृषि आधारित उद्योग, ग्रामीण क्षेत्र में बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए वित्त पोषण का काम कर रहे हैं। बैंक ग्रामीणों को बैंक से जोड़ने, महिलाओं का सशक्तीकरण करने, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने जैसे काम भी कर रहे हैं।
जनवरी 2023 तक भारत में 12 महारत्न, 13 नवरत्न कंपनियां और 62 मिनीरत्न कंपनियां थीं। आर्थिक रूप से मजबूत और मुनाफे वाली कंपनियां होने के कारण ये कंपनियां शेयर बाजार में सूचीबद्ध होती हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम (सीपीएसई), सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (पीएसबी) और राज्य स्तरीय सार्वजनिक उद्यम के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
सीपीएसई को भारी उद्योग और सार्वजनिक उद्यम मंत्रालय नियंत्रित करता है तथा सार्वजनिक उद्यम विभाग (डीपीई) सभी केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के लिए नोडल विभाग के रूप में काम करता है। वित्त वर्ष 1996-97 में सार्वजनिक क्षेत्र की वैसी कंपनियों को नवरत्न का दर्जा दिया गया, जो पहले से मिनी रत्न कंपनियों में वर्गीकृत थीं और उनके प्रदर्शन में निरंतर सुधार हो रहा था। सरकार को लग रहा था कि अगर इन्हें नवरत्न का दर्जा देकर कुछ और विशेष अधिकार एवं वित्तीय स्वायत्तता दी जाए, तो इनका प्रदर्शन और बेहतर हो सकता है।
भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, कंटेनर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड, नेशनल एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड, एनबीसीसी लिमिटेड, एनएमडीसी लिमिटेड, एनएलसी इंडिया लिमिटेड, ऑयल इंडिया लिमिटेड, राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड, रेल विकास निगम लिमिटेड, शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड आदि नवरत्न कंपनियां हैं।
सरकार ने फरवरी 2010 में महारत्न योजना लेकर आयी और मुनाफा, पर्याप्त पूंजी उपलब्धता, कम उधारी, तरलता, वित्तीय स्वायत्तता आदि मानकों पर खरा उतरने वाली नवरत्न कंपनियों को महारत्न कंपनी का दर्जा दिया गया। भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, कोल इंडिया लिमिटेड, भारतीय गैस प्राधिकरण लिमिटेड, हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड, राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम, तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम, पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन, स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड, पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन और रुरल इलेक्ट्रिफिकेशन कॉर्पोरेशन लिमिटेड 12 महारत्न कंपनियां हैं।
अमूमन निजी क्षेत्र आधारभूत संरचना को मजबूत करने के लिए आगे नहीं आते हैं। इसलिए सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का गठन किया। आज मिनीरत्न, नवरत्न, महारत्न कंपनियां और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार उपलब्ध कराने का काम कर रहे हैं। इनकी वजह से विकास को गति मिल रही है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। )
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