नई दिल्ली। लंबे समय से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग उठती आ रही है. इसे लेकर मानसून सत्र के दौरान जेडीयू सांसद रामप्रीत मंडल ने सरकार से सवाल किया जिस पर जवाब देते हुए वित्त राज्य मंत्री ने साफ कहा कि बिहार स्पेशल स्टेटस के क्राइटेरिया में फिट नहीं है।
संसद के दोनों सदनों में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का मुद्दा उठने के बीच सरकार ने 2012 में तैयार एक अंतर-मंत्रालयी समूह की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का कोई मामला नहीं बनता है।
संसद के मानसून सत्र के पहले दिन लोकसभा में जहां एक प्रश्न के माध्यम से यह मुद्दा उठाया गया, वहीं राज्यसभा में राष्ट्रीय जनता दल के मनोज झा ने शून्यकाल में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा और विशेष पैकेज, दोनों देने की मांग उठायी।
इससे पहले रविवार को हुई सर्वदलीय बैठक में भी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सहयोगी पार्टियों सहित बिहार के कुछ दलों द्वारा राज्य को विशेष दर्जा दिए जाने की मांग उठायी गयी थी. लोकसभा में जनता दल (यू) के सदस्य रामप्रीत मंडल ने प्रश्न किया था कि क्या सरकार का आर्थिक विकास और औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देने के लिए बिहार राज्य और अन्य अत्यधिक पिछड़े राज्यों को विशेष दर्जा प्रदान करने का विचार है?
इस प्रश्न के लिखित उत्तर में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने कहा कि अतीत में राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) ने कुछ राज्यों को विशेष श्रेणी का दर्जा दिया है. मंत्री ने कहा कि इन राज्यों में कुछ ऐसी विशेषताएं थीं जिन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत थी।
उन्होंने कहा कि इनमें पर्वतीय और दुर्गम भूभाग, कम जनसंख्या घनत्व या आदिवासी जनसंख्या की बड़ी हिस्सेदारी, पड़ोसी देशों के साथ सीमाओं पर रणनीतिक स्थान, आर्थिक और बुनियादी संरचना के लिहाज से पिछड़ापन और राज्य के वित्त की अलाभकारी प्रकृति शामिल रहीं.
2012 की एक रिपोर्ट का दिया हवाला
उन्होंने कहा, ‘पूर्व में विशेष श्रेणी के दर्जे के बिहार के अनुरोध पर एक अंतर-मंत्रालयी समूह (आईएमजी) द्वारा विचार किया गया था, जिसने 30 मार्च 2012 को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. आईएमजी ने यह निष्कर्ष निकाला था कि एनडीसी के मौजूदा मानदंडों के आधार पर बिहार के लिए विशेष श्रेणी के दर्जे का मामला नहीं बनता है.’ वर्ष 2012 में कांग्रेस नीत यूपीए सरकार केंद्र में थी।
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